बस्तर के कोंटा इलाके से सटे आंध्रप्रदेश के गांवों में बाघ की चहलकदमी

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  •  सुकमा जिले के कोंटा क्षेत्र से 8 किमी दूर के गांवों में नजर आ रहा है बाघ 

अर्जुन झा

जगदलपुर बस्तर संभाग के सुकमा जिले के कोंटा से करीब आठ किलोमीटर दूर आंध्रप्रदेश के चिंतूर मंडल के नरसिंम्हापुरम गांव के जंगलों में आज बाघ के पदचिन्ह दिखाई देने से स्थानीय लोगों में दहशत का माहौल है। कोंटा क्षेत्र के लोग भी दहशत में आ गए हैं। गांव वालों की सूचना के बाद वन विभाग के चिंतूर रेंज के अधिकारियों और कर्मचारियों ने मौके पर पहुंचकर बाघ के फुट प्रिंट ट्रेस किए हैं। बाघ का विचरण क्षेत्र 50 किलोमीटर के दायरे में रहता है। लिहाजा सुकमा जिले के सीमावर्ती गांवों में भी विशेष एहतियात बरती जा रही है।

चिंतूर के वन विभाग अधिकारियों के अनुसार बाघ की गतिविधियों के संकेत नरसिंमापुरम के अलावा, आसपास के गांव कूनावरम, रामचंद्रपुरम, तातीलंका, दुगुट्टा, पलागुड़ेम और बोडूनूर में भी मिले हैं। इससे ग्रामीणों में सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। बाघ की गतिविधियों की सटीक निगरानी के लिए वन विभाग ने जंगल में 20 सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, ताकि उसकी हर गतिविधि पर पैनी नजर रखी जा सके। वन विभाग के अधिकारियों ने क्षेत्रवासियों को जागरूक करते हुए बताया कि यदि बाघ को कहीं भी देखा जाता है या किसी मवेशी पर हमला होता है, तो तुरंत वन विभाग या पुलिस को सूचित करें।

पुलिस-वनकर्मी कर रहे गश्त

ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आंध्रप्रदेश पुलिस और वन विभाग की संयुक्त टीम क्षेत्र में गश्त कर रही है। एसआई ललिता ने बताया कि क्षेत्र में विशेष सावधानी बरती जा रही है। पुलिस और वन अमले के साथ ग्रामीणों को भी सतर्क रहने की सलाह दी गई है।स्थानीय निवासी बाघ की उपस्थिति से भयभीत हैं और अपने मवेशियों को जंगल के पास ले जाने से परहेज कर रहे हैं। ग्रामीणों ने वन विभाग से और अधिक सुरक्षा उपायों की मांग की है। हालांकि, अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया है कि सीसी कैमरों की निगरानी और गश्त से बाघ की गतिविधियों पर पूरी नजर रखी जा रही है, और जल्द ही स्थिति को नियंत्रण में लाया जाएगा।

बाघ संरक्षण भी अहम

बाघ जैसे विलुप्तप्राय वन्य प्राणियों का संरक्षण भी इस समस्या के बीच एक महत्वपूर्ण पहलू है। वन्यजीव विशेषज्ञों ने कहा कि बाघ की गतिविधि क्षेत्र में वन्यजीवों के लिए अनुकूल पर्यावरण का संकेत है, लेकिन मानव और वन्यजीव संघर्ष से बचने के लिए अधिक समन्वय और सतर्कता आवश्यक है।

दाखिल हो सकता है कोंटा में

बस्तर संभाग के कोंटा इलाके के जंगल आंध्रप्रदेश और तेलंगाना राज्यों के जंगलों से पूरी तरह जुड़े हुए हैं और ये जंगल बाघ, तेंदुओं जैसे प्राणियों के रहवास के लिए पूरी तरह अनुकूल हैं। इन जंगलों में हिरणों, सांभर, चीतल, जंगली सुअरों की अच्छी खासी संख्या है, जो बाघों, तेंदुओं की आहार श्रृंखला में शामिल हैं। वहीं दूसरी ओर वन्य ग्रामों के ग्रामीण अपने मवेशियों को चराने के लिए जंगलों में ही ले जाते हैं। मांसभक्षी जंगली जानवरों के लिए पालतू मवेशी आसान शिकार होते हैं, लिहाजा कई बार वे पालतू गाय, बैल, भैंसों, भेड़, बकरियों को भी अपना निवाला बना लेते हैं। वन्य प्राणी विशेषज्ञ बताते हैं कि बाघ अमूमन 50 से 100 किलोमीटर के दायरे में विचरण करते हैं। इस लिहाज से आंध्रप्रदेश के जंगलों में घूम रहा बाघ कोंटा क्षेत्र में भी प्रवेश कर सकता है।