दल्लीराजहरा:- में बंगाली समाज के द्वारा दीपावली की रात्रि को विभिन्न अनुष्ठानों के साथ कालीबाड़ी में साथ मां काली की पूजा की गई तथा अपने परिवार के साथ-साथ शहर की सुख समृद्धि और शांति के लिए माँ काली से दुआएँ मांगी गई l पश्चिम बंगाल में दीपावली का त्योहार मां काली की पूजा के रूप मे मनाया जाता है l
राजहरा कालीबाड़ी के सचिव मदन माइती ने बताया कि राजहरा कालीबाड़ी की स्थापना स्वामी आत्मानंद रामकृष्ण मिशन रायपुर के कर कमरों के द्वारा 24 जून 1972 ईस्वी को संपन्न हुआ l उस समय विश्वनाथ आईच एवं डी एन राय व्यवस्थापक थे l साथ ही लगभग 34 व्यक्ति कालीबाड़ी की व्यवस्था में अपनी भागीदारी निभाई l जिसमें विश्वनाथ आईच ,गगन परेरा आज हमारे बीच उपस्थित है l
राजहरा बंगाली समाज के द्वारा प्रतिवर्ष अमावस्या और पूर्णिमा को कालीबाड़ी स्थित मां काली के मन्दिर में विशेष पूजा की जाती है l खासकर दीपावली की रात्रि को मां काली की रात्रि माना जाता है l इस रात्रि पूरे बंगाल में मां काली की पूजा की जाती है l दीपावली की रात्रि दल्ली राजहरा के बंगाली समाज का परिवार कालीबाड़ी में एकत्र होते हैं और पूरे विधि विधान के साथ मां काली की पूजा की जाती है l यह पूजा रात्रि लगभग 8:30 बजे से प्रारंभ होकर लगभग 3:00 बजे रात्रि तक होता है l कार्यक्रम प्रारंभ रात्रि 8:30 बजे कालीबाड़ी के अध्यक्ष सुकांतो मंडल , मदन माइती और कनक बनर्जी के द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया l कार्य
क्रम में उपस्थित समाज के गौतम बेरा सजल राय, यस सी सरकार ,गौतम बोस, पुरोबी वर्मा एवं अन्य उपस्थित लोगों के द्वारा पूरे मंदिर परिसर में दीप प्रज्वलित किया गया l यज्ञ में पूजा सेक्रेटरी सजल राय बैठे थे l यज्ञ समाप्त होने के बाद सभी उपवास धारी अंजलि कर उपवास तोड़े तब पूजा समाप्त हुआ l इस पूजा में समाज के सभी लोगों के द्वारा एकत्र होकर मां काली से अपने परिवार की सुख समृद्धि के साथ शहर के भी शांति और खुशहाली की दुआएं मांगी गई l
मदन माइती ने बताया कि दीपावली की रात्रि में काली पूजा मनाने का पीछे कई कारण और कथाएं हैं l मां काली शक्ति और संरक्षण का प्रतीक है दीपावली की रात्रि उनकी पूजा करने से घर में सुख समृद्धि और शांति आती है l मां काली ने असुरों का विनाश किया था इसलिए इस रात्रि में पूजा करके बुराई पर अच्छाई का जीत भी माना जाता है l इस दिन मां की पूजा करने से घर मे समृद्धि आती है l बंगाल में काली पूजा को पारंपरिक त्योहार माना जाता है l
मां काली की पूजा करने के पीछे एक पौराणिक कथा है इस कथा के अनुसार शुंभ निशुंभ और चंड मुंड नामक राक्षस का अत्याचार बढ़ गया था l इसके बाद राक्षसों ने इंद्रलोक पर कब्जा करने के लिए देवताओं से युद्ध शुरू कर दिया l तब सभी देवताओं ने भगवान शिव के पास पहुंचे और उन दैत्यों से छुटकारा पाने के लिए प्रार्थना किया l तब भगवान शिव ने मां पार्वती का स्वरूप अंबा को प्रकट किया और अंबा ने मां काली का रूप धारण कर दैत्यों का सर्वनाश करना प्रारंभ कर दिया l
इसके बाद अति शक्तिशाली रक्तबीज वहां पर आ पहुंचे रक्तबीज एक ऐसा राक्षस था जिसके खून की एक बूंद जमीन पर पढ़ने से ही नया राक्षस पैदा हो जाता था l उसके विनाश के लिए मां काली ने अपने खड़ग से उनका सिर कांटा तथा उनके रक्त जमीन पर ना पड़े इसलिए मां काली ने अपना जीभ बाहर निकालकर उनके रक्त पान किया l जिससे नए रक्त बीज उत्पन्न नहीं हो सका l रक्तबीज के वध करने के बाद भी मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ l संहार के मुद्रा में रही भगवान शिव को जब मां काली के इस रूप का आभास हुआ तो चुपचाप उनके चलने वाली रास्ते पर जाकर लेट गए l मां काली का पैर जब भगवान शिव के सीने पर पड़ा तब वहां चौक गई कि यह तो भगवान शिव है और उनका क्रोध तत्काल शांत हुआ l तब पूरे संसार को उन्होंने आशीर्वाद दिया इसलिए कार्तिक मास के अमावस्या को मां काली की पूजा की जाती है l
पूजा कार्यक्रम समाप्त होते ही सभी को प्रसाद वितरण किया गया l कालीबाड़ी मंदिर के अध्यक्ष सुकांतो मंडल ने सभी समाज के सभी लोगों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि बड़ों के साथ बच्चों को भी मंदिर में आने के लिए प्रेरित करें l ताकि वह भी अपने संस्कृति से जुड़े रह सकेl
कालीपूजा के दिन भजन संध्या का आयोजन किया गया जिसने मीरा भट्टाचार्य, सुमित्र आइच, बुलबुल आइच, मुनमुन सिन्हा, सजल राय,मिठू कारफा, मिठू कर , राजश्री चक्रवर्ती, देबोलीना भट्टाचार्य ने भजन प्रस्तुत किया।
कालीबाड़ी पूजा में अशोक शाहा, अशोक आईच, आदिती आईच , गौतम बोस, जयंती बोस , दीपा माइती, गौतम माइती , मिंटू सिन्हा, सोमू पाल , तृप्ति पाल,पुरोबी वर्मा , कनक बनर्जी, रीता बनर्जी ,गौतम बेरा ,संगीता बेरा ,पलाश कारफ़ा , एस .सी सरकार , सोमा विश्वास , जंयत चकवती, शंभू विश्वास, मधुमिता सहजिया एवं समाज के अन्य लोग भी उपस्थित थे l