अर्जुन झा – जगदलपुर
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार के दो साल पूरे होने के जश्न के दौर में सियासी सरगर्मी तेज है। नेतृत्व परिवर्तन का कहीं सूत नज़र आ रहा न ही राजनीतिक कपास के फूल। लेकिन सियासी गलियारों में कहीं आस और कहीं प्यास का आलम चर्चा का सबब बना हुआ है। भूपेश बघेल के राज में विपक्ष राहत का पानी चाहता है। भूपेश बघेल के अंदाज से विरोधियों का गला सूख रहा है। वे चाहते हैं कि यदि कांग्रेस में फिफ्टी फिफ्टी का कोई खेल हो जाय तो भूपेश की सख्ती से छुटकारा मिले। जबकि कांग्रेस का वह खेमा आस लगाए बैठा है, जो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सक्रियता के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रहा और खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है। इस खेमे को उम्मीद है कि प्रयास करने से कुछ हासिल हो सकता है।
नेतृत्व न सही, अहमियत मिल जाय, यही कुछ कम नहीं। अभी तो केवल नाम की ओहदेदारी से काम चलाना पड़ रहा है। इस प्रसंग में राज्य की राजनीति में इस समय भारी खलबली मची हुई है। क्या कोई राजनीतिक तूफ़ान आने वाला है? आसार तो नहीं हैं, लेकिन राजनीति में कुछ भी असम्भव नहीं होता। वैसे कांग्रेस में बमुश्किल निष्प्रभावी हुईं गुटबाजी इस माहौल में फिर से पनपने के आसार दिखते महसूस किए जा रहे हैं। इस समय प्रदेश में ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री की चर्चाओं ने जनता को भ्रम में डाल रखा है कि क्या छह माह बाद वाकई नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है? राज्य में तीन चौथाई बहुमत वाली कांग्रेस सरकार गठित होते समय ढाई ढाई साल के सीएम का फार्मूला चर्चा में आया था। मगर जल्द ही वह चर्चा बंद हो गई थी। अब दो साल पूरे होने के समय नए सिरे से यह बात सामने आ रही है तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पहली बार इस मामले में स्पष्ट कर दिया है कि आलाकमान का आदेश होगा तो वे फौरन इस्तीफा दे देंगे। भूपेश बघेल का कहना है कि आलाकमान के कहने पर ही वे मुख्यमंत्री बने हैं और अगर पार्टी आलाकमान कह दे तो अभी पद से इस्तीफा दे दूंगा।
उनका कहना है कि मुझे मुख्यमंत्री पद से मोह नहीं है। इस तरह उन्होंने खुलासा कर दिया है कि पार्टी आलाकमान जो चाहे वह तत्काल प्रभाव से मंज़ूर है। अब मूल बात तो यह है कि आलाकमान क्या चाहता है? भाजपा ने मांग उछाल दी है कि कांग्रेस आलाकमान स्पष्ट करे कि कौन मुख्यमंत्री होगा। अब यह तो स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री जो भी हो, वह कांग्रेस का ही होगा तब भाजपा बेगानी शादी में नाचने क्यों उतावली हो रही है? बात यह है कि विपक्ष के तौर पर भाजपा सीएम बघेल को लेकर आरम्भ से ही सहज नहीं है। सीएम बघेल के आक्रामक तेवर उसे बदलापुर की राजनीति नज़र आते हैं। वैसे यदि सरकार और विपक्ष के नेता के बीच सहज संबंध हों तो विपक्ष को सियासी नुकसान होता है। यह बात भाजपा बेहतर तरीके से जानती है। जब कांग्रेस संगठन अध्यक्ष की हैसियत से भूपेश बघेल ने तीखे तेवरों के साथ भाजपा सरकार को घेरा तो उसके डेढ़ दशक की सत्ता छिन गई। कांग्रेस सरकार के मुखिया की भाजपा के प्रति आक्रामकता ही भविष्य में उसके लिए उम्मीद के द्वार खोल सकती है, यह बात उसके नेताओं को समझना चाहिए। विपक्ष में रहते हुए राहत की तलाश करना संघर्ष की धार को खत्म करने की कोशिश के समान होता है।
कांग्रेस सरकार में मौजूदा हालात ही भाजपा के भविष्य के लिए उपयुक्त हैं। यदि हालात में बदलाव होगा तो भाजपा की आक्रामकता पर प्रभाव पड़ेगा, यह उसके लिए घातक हो सकता है। वैसे मुख्यमंत्री बघेल का कहना है कि जो लोग ऐसी गलतफहमी पैदा कर रहे हैं वे राज्य के साथ अच्छा नहीं कर रहे। उनसे राज्य का विकास नहीं देखा जा रहा है। विकास देखकर तकलीफ हो रही है। यानी सीएम बघेल को अपने कामकाज पर पूरा भरोसा है कि वे राज्य का विकास जनता की भावनाओं के अनुरूप कर रहे हैं। उनकी अपनी पार्टी का आला कमान तो यह महसूस कर ही रहा है। तभी उन्हें चुनाव में दीगर राज्यों में स्टार प्रचारक बनाया जाता है। इसके अलावा केंद्र की विपरीत विचारधारा की सरकार भी भूपेश बघेल सरकार के काम की तारीफ कर रही है। तब काम के मामले में तो नेतृत्व परिवर्तन की गुंजाइश बिल्कुल भी नहीं है। अगर ढाई ढाई साल वाली कोई बात है तो वह अब तक एक अबूझ पहेली ही है। मुख्यमंत्री बघेल का कहना है कि जनादेश 5 साल के लिए मिला है तो यह समझा जा सकता है कि वे यह बात अपने नेतृत्व वाली सरकार के बारे में कह रहे हैं। उनका कहना है कि इस मामले को तूल देने की क्या जरूरत है, जबकि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की मांग है कि कांग्रेस आलाकमान स्थिति स्थिति साफ करे।
कौशिक का कहना है कि प्रदेश के एक कद्दावर नेता के बयान पर मुख्यमंत्री का बयान आया है। कांग्रेस आलाकमान को स्थिति स्पष्ट करना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि क्या प्रदेश में ढाई-ढाई साल के सीएम का कार्यकाल तय किया गया या नहीं। वैसे भाजपा इसी बहाने सत्ताधारी दल की उथल पुथल से उत्साहित हैं। उसके राजधानी रायपुर के शहर जिला अध्यक्ष और पूर्व विधायक श्रीचन्द सुंदरानी ने ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री वाले बयान पर कहा है कि भूपेश बघेल द्वारा अभी इस्तीफा देने और यहां से चले जाने की बात दो साल की विफलता का अहसास है। राहुल गांधी हस्तक्षेप कर मध्यप्रदेश के उदाहरण को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के बीच सुलह करवाएं। अब यहां प्रश्न यह है कि भाजपा यह सुलह क्यों चाहती है और उसके अपने भीतर क्या सब ठीक ठाक चल रहा है? कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता विकास तिवारी जवाबी फायरिंग करते हुए कह रहे हैं कि भाजपा यह देखने की बजाय कि कांग्रेस के भीतर क्या चल रहा है, यह देखे कि भाजपा के अंदर क्या चल रहा है। वैसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तो अपनी बात खुलकर सामने रख दी। फैसला कांग्रेस आलाकमान को करना है, लेकिन भाजपा में जो कलह चल रही है और जिसके कारण वह विधानसभा चुनाव में बस्तर से पूरे सफाए के साथ ही प्रदेश में चौदह सीटों पर सिमट गई, उसका समाधान कब और कैसे होगा, यह भी तो एक बड़ा विषय है। छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदर्शन को देखते हुए भाजपा के भीतर से ही सवाल उभरते हैं तब भाजपा मौन व्रत धारण कर लेती है। सियासी लिहाज से यही सही होगा कि भाजपा अपनी जमीन मजबूत करने और कमजोरी दूर करने की कोशिशों पर ध्यान देते हुए सरकार के खिलाफ संघर्ष तेज करे। दो साल बीत गए। देखते ही देखते बाकी वक्त और गुजर जायेगा। इन पांच सालों में सरकार और विपक्ष दोनों को ही जनता अच्छे से जान लेगी। भूपेश बघेल सरकार अपने काम और भाजपा अपने संघर्ष को किस तौर तक ले जाते हैं, ये आने वाला समय बताएगा। अभी तो भाजपा सत्ताधारी कांग्रेस की खिड़कियों के सुराख में झांकने की बजाय अपना घर देखे तो ज्यादा अच्छा होगा।