मिट्टी मुरुम का सड़क निर्माण के नाम पर वन विभाग में चल रहा खानापूर्ति

0
197

भवन निर्माण में भी गुणवत्ता ताक पर

वन परिक्षेत्र अधिकारी बने ठेकेदार तकनीकी जानकारी का अभाव

जगदलपुर। सामान्य बस्तर वन मंडल के कई वन परिक्षेत्रों के अंदरूनी इलाको में मुरूम मिट्टी सड़क निर्माण के नाम पर खानापूर्ति कर शासकीय राशि की बंदरबाट करने की तैयारी। वहीं भवन निर्माण कार्यों में भी गुणवत्ता को दरकिनार किया जा रहा है लिपपोती कार्य। ऐसे कार्यों को संबंधित रेंज के वन परिक्षेत्र अधिकारी के द्वारा अंजाम देकर कमीशन के भी बंटवारे की तैयारी है। जानकारी के बाद भी जिम्मेदार अधिकारी अनजान बने हुए है।

ज्ञातव्य हो कि बस्तर जिले के कई ऐसे इलाके है जो रिजर्व फारेस्ट एरिया घोषित है। इन इलाकों को पक्की सड़कों के निर्माण के लिए केन्द्र सरकार की अनुमति लेना अनिवार्य होता है। इन सारी झनझटो से बचने के लिए आवागमन का साधन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्थानीय स्तर पर मिट्टी मुरूम सड़क का प्रस्ताव शासन को भेजा जाता है। इन इलाकों में मिट्टी मुरूम के बेहर सड़क निर्माण कराने को स्वीकृति वन विभाग द्वारा दी जाती है। उन कार्यों को विभाग द्वारा ही अपने स्तर पर कराया जाता है।शासन की मंशा के विपरित हो खानापूर्ति कर सड़क का निर्माण कर महज औपचारिकता निभाई जा रही है।

मापदंडो का ठिकाना नहीं: बस्तर वन मंडल के कई वन परिक्षेत्र के खासतौर से नक्सल प्रभावित इलाके गांव में मिट्टी मुरूम का निर्माण कराया जा रहा है जिसमें ठेकेदार स्वयं रेजर बने हुए है। इन दिनों 3 से 4 स्थानों पर लाखों खर्च कर सड़क का निर्माण कराया गया है ताकि ग्रामीणों को जिला एवं जनपद मुख्यालय तक पहुंचने में आसानी हो सके लेकिन जितनी राशि व्यय की जा रही है उस गुणवत्ता के साथ सड़क का निर्माण नहीं किया जा रहा है। कई स्थानों पर खेतों से ही मिट्टी निकालकर उपर परत पर नाम मात्र का मरूम का उपयोग कर लिपपोती का कार्य कर राशि की बंदरबाट की जा रही है। – सड़क किस मापदंड को होनी चाहिए इसका कही भी उल्लेख नहीं किया गया है जबकि शासन के आदेशानुसार निर्माण

स्थल पर बोर्ड लगाकर सारी जानकारियां अंकित करने का निर्देश भी दिया गया है। जिसका पालन रेजर बने ठेकेदार द्वारा किया जा रहा है। वन विभाग द्वारा बनाई गई अधिकांश सड़कों में कमोवेश यही हालात है।

वन विभाग द्वारा कई स्थानों पर भवन का भी निर्माण कराया जा रहहा है जिसकी गुणवत्ता भी भगवान भरोसे है,कॉलम कही जा रहे है तो दिवार कही ऐसा नजारा वन विभाग के भवनों में देखा जा सकता है।

इन मामलों में जब विभाग के जिम्मेदार अधिकारी से पूछ जाने पर गोलमोल जवाब देकर कुछ भी बोलने से बचा करते है और संबंधित रेज अफसर से बात करने की सलाह दी जाती है |