हाल ही में सेल कर्मियों के वेतन समझौते के उपरांत खदान कर्मियों के बीच प्रबंधन द्वारा दिए जा रहे दासा की राशि और उसके एरियर्स कोलेकर आक्रोश पनप रहा था एवं विभिन्न श्रम संगठनों द्वारा भी सेल एवं बीएसपी प्रबंधन पर कर्मियों के साथ पक्षपात करने का आरोप लगाया जा रहा था। इस विषय पर बीएसपी के बंधक खदानों में कार्यरत तीन श्रम संगठनों – बी.एम.एस, एटक एवं इंटुक ने संयुक्त रूप से प्रबंधन के समक्ष इस बात को रखते हुए जल्द से जल्द निर्णय लेने हेतु कहा था किन्तु किसी तरह की कोई कारवाई न होते देख तीनों श्रम संगठनों ने दिनांक 07.01.2021 से अनिश्चितकालीन हड़ताल का नोटिस बीएसपी प्रबंधन एवं उप मुख्य श्रमायुक्त (केंद्रीय) रायपुर को 14.12.2021 को सौंपा। इस परिपेक्ष्य में दिनांक 03.01.2022 को बीएसपी प्रबंधन के साथ एवं दिनांक 04.01.2022 को उप मुख्य श्रमायुक्त (केंद्रीय) रायपुर के कर्म्यालय में भी प्रबंधन के साथ विस्तृत चर्चा हुई जिसमे उप मुख्य श्रमायुक्त (केंद्रीय) रायपुर ने प्रबंधन को श्रम संगठनों के साथ मिलकर चर्चा करने एवं समाधान करने का सुझाव दिया। अपने इस हड़ताल में तीनों श्रम संगठनों ने जो मांगें प्रबंधन के समक्ष राखी थी वे इस प्रकार हैं –
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(1) समस्त खदान कर्मियों को उनके बढे हुए वेतनमान के 10% राशि को तत्काल दासा के रूप में भुगतान किया जावे और उसका एरियर्स का भी भुगतान किया जावे।
(2) खदान में कार्यरत सभी ठेका श्रमिकों को रुपये 150/- प्रतिदिन के हिसाब से दासा का भुगतान किया जावे।
उप मुख्य श्रमायुक्त (केंद्रीय) रायपुर के सुझाव पर बीएसपी प्रबंधन ने दिनांक 06.01.2022 को तीनों श्रम संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ उनके मांगों पर विस्तृत चर्चा की। लम्बे चर्चा के उपरान्त दोनों पक्षों के बीच सद्भावपूएं वातावरण में लिखित समझौता हुआ जिसमे इन मुद्दों पर सहमति बनी –
(1) सभी नियमित कर्मियों को जनवरी माह के वेतन के साथ उनके बढे हुए वेतन के 8% राशि को दासा के रूप में दिया जावेगा और 18.11.2021 से 31.12.2021 तक का एरियर्स भी इसी के साथ भुगतान किया जावेगा। श्रम संगठनों के द्वारा 8% राशि का विरोध करने पर प्रबंधन ने कहा कि ये 8% राशि प्रबंधन द्वारा तय नहीं की गयी है बल्कि केंद्र सरकार के कार्यालय ज्ञापन क्रमांक – W-02/0028/2017-DPE(WC)-GL-XVI-17, Dated – 07.09.2017 के आधार पर किया दिया जाना तय हुआ है। पूर्व में भी जो 10% राशि दी जा रही थी वह केंद्र सरकार के कार्यालय ज्ञापन क्रमांक – 2(70)/08-DPE(WC)-GL-XVI/08, Dated – 08.11.2008 द्वारा तय की गयी थी। इस पर उक्त कार्यालय ज्ञापनों का अध्ययन करने के पश्चात सभी श्रम संगठनों ने इस बात पर आपत्ति की कि उक्त कार्यालय ज्ञापन में केवल अधिकारीयों और नॉन- यूनियन सुपरवाइजरी केटेगरी की बात की गयी है जिसपर बीएसपी प्रबंधन ने दो माह के भीतर इसपर सम्बंधित मंत्रालय से आवश्यक दिशा निर्देश प्राप्त कर कारवाई करने की बात मानते हुए कहा कि अगर मंत्रालय द्वारा सामान्य कर्मियों को 10% राशि देने हेतु मंजूरी दे दी जाती है तो उसका भुगतान कर दिया जावेगा। जहांतक दासा के एरियर्स की बात है तो इसपर भी दो माह के भीतर निगमित कार्यालय से आवश्यक कारवाई कर भुगतान कर दिया जावेगा। जहाँ तक पिछले वेतन समझौते के बाद के दासा एरियर्स राशि भुगतान की बात है तो अगर आरएमडी के खदानों में दिए गए एरियर्स को प्रबंधन द्वारा काटा नहीं गया है तो एक माह के भीतर उसका भी भुगतान कर दिया जावेगा। इस पर तीनों श्रम संगठन ने सहमति जताते हुए प्रबंधन के पक्ष को स्वीकार किया।
ठेका कर्मियों के लिए दासा राशि भुगतान करने के मुद्दे पर प्रबंधन ने स्पष्ट कहा कि ठेका कर्मियों को दासा राशि भुगतान हेतु केंद्र सरकार की तरफ से कोई दिशा निर्देश नहीं है। इसपर सभी श्रम संगठनों ने कहा कि आज कंपनी के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ने और बनाये रखने में ठेका श्रमिकों का भी नियमित कर्मियों की तरह बराबर का योगदान है ऐसे में उन्हें वंचित रखना उचित नहीं है। चर्चा के दौरान प्रबंधन ने माना कि श्रम संगठनों की बात सही है और सैद्धांतिक रूप से प्रबंधन श्रम संगठनों की मांग से सहमत है और इस मुद्दे पर एक कमिटी का गठन किया गया है जिसका निर्णय आने के उपरांत इस दिशा में समुचित कारवाई की जावेगी। प्रबंधन के इस बात से सभी श्रम संगठनों ने नाराजगी जताते हुए स्पष्ट किया कि वो इस बात को स्पष्ट उल्लेख करे कि उक्त कमिटी कबतक अपना रिपोर्ट देगी और कमिटी के रिपोर्ट को फाइनल करने के पहले सभी श्रम संगठनों से भी चर्चा करना आवश्यक होगा। लाबी चर्चा के उपरांत तीनों श्रम संगठनों द्वारा ठेका श्रमिकों को प्रतिदिन रूपए 150/- दासा के रूप में देने की मांग पर भी सैद्धांतिक सहमति बनी किन्तु उक्त राशि दासा के रूप में न देते हुए उसे खदान भत्ता के रूप में दिया जावेगा। साथ ही प्रबंधन ने यह भी स्वीकार किया कि 01.04.2022 से उक्त राशि भत्ते के रूप में ठेका श्रमिकों को दिया जावेगा। इसके अलावा पबंधन ने इस बात को भी स्वीकार किया कि दिनांक 01.04.2022 से ठेका श्रमिकों एवं उनके आश्रितों के लिए मेडिकल सुविधा भी शुरू कर दी जावेगी।
तीनों श्रम संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि उक्त प्रस्तावित हड़ताल हेतु तय किये गए मुद्दों पर प्रबंधन के द्वारा किये गए सकारात्मक पहल के बाद हड़ताल का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता था अतएव हड़ताल वापस लेने की घोषणा की गयी। किन्तु नियमित कर्मियों और ठेका श्रमिकों के लिए किये गए इस समझौते से कुछ ऐसे श्रम संगठन के पेट में दर्द होने लगा जो एक तरफ तो नियमित एवं ठेका श्रमिकों के मसीहा होने का दम्भ भरते हैं तो दूसरी तरफ उन्हें किसी भी तरह के लाभ से वंचित रखना अपना परम कर्तव्य समझते हैं। इस दिशा में सीटू एवं सीएमएमएस के नेतागण यह तो बताएं कि अगर वास्तव में वो नियमित एवं ठेका श्रमिकों का भला चाहते हैं तो दिनांक 07.01.2022 के प्रस्तावित हड़ताल का नोटिस उप मुख्य श्रमायुक्त (केंद्रीय) रायपुर को क्यों नहीं दिया? चूँकि इन दोनों श्रम संगठनों द्वारा उप मुख्य श्रमायुक्त (केंद्रीय) रायपुर को नोटिस नहीं दिया गया था अतएव प्रबंधन एवं उप मुख्य श्रमायुक्त (केंद्रीय) रायपुर ने इन दोनों श्रम संगठनों को समझौता वार्ता के प्रक्रिया से अलग रखा जिसके लिए ये स्वयं जिम्मेदार हैं। जहाँ तक सीएमएमएस की बात है तो तीनों श्रम संगठनों ने सीएमएमएस के मुखिया गणेश राम चौधरी से भी 06.01.2022 को होने वाले वार्ता में शामिल होने हेतु निवेदन किया था किन्तु उन्होंने इससे स्पष्ट मना कर दिया। श्री गणेश राम चौधरी द्वारा ठेका श्रमिकों को दासा के रूप में उनके मूल वेतन का 10% राशि देने, नाईट शिफ्ट अलाउंस देने एवं मेडिकल सुविधा देने की मांग की गयी थी जिसके अनुसार ठेका श्रमिकों को रुपये 35/- से लेकर रूपए 60/- प्रतिदिन ही मिलेगा। ऐसे में अब सभी ठेका श्रमिक यह तय करें कि तीनों श्रम संगठनों द्वारा किये गए समझौतानुसार मिलने वाली राशि उचित है या फिर श्री गणेशराम चौधरी द्वारा की गयी मांग सही है। जहाँ तक मेडिकल सुविधा की बात है तो प्रबधन ने इस सुविधा को 01.04.2022 से ठेका श्रमिकों के लिए शुरू करने की प्रतिबद्धता दिखाते हुए लिखित में इसे माना है। ऐसे में सीएमएमएस के नेता श्री गणेशराम चौधरी द्वारा की गयी सभी मांग भी पूरी हो चुकी है। तब मांग पूरी होने के बाद भी उनके द्वारा हड़ताल करना और सीटू द्वारा उसका समर्थन करना कितना सही है उसका निर्णय अब स्वयं सभी ठेका श्रमिक करें।
जहाँ तक नियमित कर्मियों के लिए किये गए समझौते की बात है तो यह साफ़ है कि समझौता वार्ता से अपने आप को बाहर रखकर सीटू ने नियमित कर्मियों के साथ छलावा किया है और उनका यह कहना कि समझौता गलत हुआ है मात्र एक भ्रामक प्रचार है। दरअसल में सीटू एक ऐसा श्रम संगठन है जो किसी भी तरह से कर्मियों का भला नहीं चाहता है किन्तु अपने आप को नियमित कर्मियों / ठेका श्रमिकों का मसीहा बताता है। तीनों श्रम संगठनों के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट कहा कि आज जिन ठेकों में सीटू के श्रमिक कार्यरत हैं उनमे ठेकेदार द्वारा समुचित भुगतान नहीं किया जाता है। कागज में पूरा भुगतान दिखाकर श्रमिकों से पैसा वापस ले लिया जाता है लेकिन सीटू के नेता ऐसे ही ठेकेदार को संरक्षण देते हैं। पिछले बार भी वर्ष 2014 में दासा के मुद्दे को लेकर हुई लड़ाई में भी इन्होने अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने हेतु मान्यता के आड़ में एक ऐसा घटिया समझौता किया था जिसका न तो कोई सर था और न ही पैर। मामला दासा के एरियर्स राशि का था जिसे आरएमडी के खदानों में दिया गया था लेकिन इसके लिए इन्होने मामले को समझने हेतु कमिटी की बात की जिसका न तो कभी गठन हुआ और न ही कोई क्रियान्वयन। जबकि एटक और इंटुक ने प्रबंधन के साथ वार्ता जारी राखी और बीएमएस ने मामले को कैट में रखते हुए वाद दायर की। जबकि सीटू ने मामले में चुप्पी साधे रखी। ऐसे में अब कर्मीगण स्वयं तय करें कि सीटू कितना कर्मियों के हित को चाहता है? सीटू और सीएमएमएस के विरोध को केवल दिखावा करार देते हुए तीनों श्रम संगठनों के प्रतिनधियों ने कहा की दरअसल में सीएमएमएस और सीटू के नेतागण किसी भी कर्मियों का भला नहीं चाहते हैं और उनका एक ही ध्येय है कि कर्मी आधा पेट खाना खाएं और उनके पीछे घूमें।