(अर्जुन झा)
भाजपा में बदलाव का दांव, बेचैन है कांग्रेस का गांव…
मरकाम जायेंगे या सलामत रह पायेंगे?
जगदलपुर। बस्तर के सियासी गलियारों में यह सवाल टहलने लगा है कि बस्तर की ओर से छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व सम्हाल रहे मोहन मरकाम और महिला कांग्रेस की कप्तान फूलोदेवी नेताम कब तक अपने सिंहासन पर बैठ सकते हैं? भाजपा ने अपने प्रदेश संगठन में बदलाव शुरू कर दिया है। प्रदेश अध्यक्ष बदले जा चुके हैं और नेता प्रतिपक्ष भी बदले जाने की सुगबुगाहट है। तय माना जा रहा है कि भाजपा किसी भी वक्त फैसला कर सकती है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जिस तरीके से चौंकाने वाले फैसले कर रहा है, उसे देखते हुए यह संभावना अधिक है कि भाजपा ने जिस तरह आदिवासी दिवस के मौके पर आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को बिना किसी झिझक के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद से मुक्त कर दिया और बिलासपुर सांसद अरुण साव को संगठन की कमान सौंपकर साहू समाज को सम्मान दिया, उसी प्रकार नेता प्रतिपक्ष के पद पर बदलाव हुआ तो भाजपा फिर चौंका सकती है। बहुत संभव है कि भाजपा किसी आदिवासी नेता को नेता प्रतिपक्ष घोषित कर सकती है। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा नेता प्रतिपक्ष का पद आदिवासी को देकर कांग्रेस को घेर सकती है। भाजपा बदलाव का दांव चल रही है और इससे कांग्रेस का गांव बेचैन है।कांग्रेस के तमाम आदिवासी, गैरआदिवासी नेता विष्णुदेव के लिए तड़प रहे हैं। कह रहे हैं कि भाजपा ने आदिवासी समाज का अपमान किया है। भाजपा कह रही है कि हमने तो आदिवासी राष्ट्रपति बना दिया। कांग्रेस यदि आदिवासी का इतना सम्मान करती है तो मोहन मरकाम को मुख्यमंत्री बना दे। अब कांग्रेस इसका क्या जवाब दे सकती है? हां, वह नंदकुमार साय की याद दिला सकती है और ऐसा कर भी रही है लेकिन 2003 से अब तक राजनीति लंबा सफर तय कर चुकी है। मौजूदा समय में कांग्रेस आदिवासी मुख्यमंत्री ki कल्पना भी नहीं कर सकती किंतु भाजपा के पास अवसर है कि वह आदिवासी वर्ग को नेता प्रतिपक्ष बनाकर छत्तीसगढ़ की राजनीति में धमाका कर सकती है। भाजपा ने काफी सोच विचार कर आदिवासी की जगह ओबीसी अध्यक्ष तैनात किया है। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक भी ओबीसी वर्ग से हैं। एक बड़ी बात यह कि नए नवेले भाजपा अध्यक्ष अरुण साव और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष कौशिक एक ही इलाके से जुड़े हैं। साव बिलासपुर सांसद हैं और कौशिक बिल्हा से विधायक हैं। वैसे ऐसा कोई बंधन नहीं है कि दो अहम पदों पर एक ही इलाके के दो नेता सुशोभित नहीं हो सकते। नरेंद्र मोदी और अमित शाह इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। यहां बात छत्तीसगढ़ स्तर की है तो क्षेत्रीय संतुलन बनाने की जरूरत समझी जा सकती है। अब सवाल यह है कि संगठन का मुखिया ओबीसी वर्ग से नियुक्त किया जा चुका है तो नेता प्रतिपक्ष का पद भी इसी वर्ग को देकर सियासी संतुलन कैसे बनाया जा सकता है? जाहिर है कि भाजपा के लिए चुनावी लिहाज से ब्राम्हण समाज, वैश्य समाज से ज्यादा जरूरी आदिवासी समाज को साधना हो सकता है। यदि भाजपा ने नेता प्रतिपक्ष का पद आदिवासी वर्ग को दे दिया तो कांग्रेस के पास यही बेहतर विकल्प होगा कि संगठन का नेतृत्व आदिवासी समाज के पास सलामत रखा जाये। वैसे जरूरी यह भी नहीं है कि आदिवासी चेहरा वही का वही रखा जाए। मोहन मरकाम का कार्यकाल पूरा हो चुका है। वे नए अध्यक्ष की नियुक्ति तक पद पर बने रहेंगे। महिला कांग्रेस की कमांडर फूलोदेवी नेताम राज्यसभा सांसद हैं और कांग्रेस में और भी आदिवासी महिला नेता हैं जो राह देख रही हैं। ऐसे ही मरकाम के अलावा भी कई सक्षम आदिवासी नेता कांग्रेस में हैं। सवाल उठ रहा है कि जब जिला स्तर पर नवीनता की जरूरत है तो प्रदेश स्तर पर क्यों नहीं?