(अर्जुन झा)
जगदलपुर। बस्तर के कोंडागांव विधायक और छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तोर तिरंगा, मोर तिरंगा के चक्कर में अपना मूल काम शायद भूल गए। राज्य स्तरीय गौरव यात्रा में अव्वल तो उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से प्रदेश स्तर पर नेतृत्व करना चाहिए था लेकिन वे अपने विधानसभा क्षेत्र में ही ज्यादा सक्रिय रहे। पहले भी ऐसे आयोजनों के समय वे कोंडागांव में ही सीमित रहे हैं। जिससे सियासी हलकों में यह पैगाम जाता है कि मोहन मरकाम कांग्रेस के लिए प्रदेश स्तर पर कम और कोंडागांव विधायक के रूप में अपने निर्वाचन क्षेत्र में ज्यादा समय दे रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी जनप्रतिनिधि को अपने निर्वाचन क्षेत्र को भरपूर समय देना चाहिए। अधिकतम विकास करना चाहिए। क्षेत्र की जनता से सीधा जुड़ाव होना चाहिए। जनता की सामूहिक समस्याओं का त्वरित निदान करना चाहिए। लेकिन, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जिस तरह से अपने निर्वाचन क्षेत्र तक सिमट गए नजर आ रहे हैं, उसे देखते हुए राजनीतिक गलियारों में सवाल उभर रहे हैं कि क्या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदेश संगठन से ज्यादा फोकस अपने चुनाव क्षेत्र में कर रहे हैं। सत्ता काल में राजनीतिक संगठनों के प्रदेश अध्यक्ष के पराजित होने के भी छत्तीसगढ़ में उदाहरण हैं। क्या इसे देखते हुए पीसीसी चीफ अपने क्षेत्र में स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं। मोहन मरकाम कई अवसरों पर विधायकों के परफार्मेंस पर अपनी राय व्यक्त कर चुके हैं। बात सही है कि विधायकों को अपने क्षेत्र और काम पर ध्यान देना चाहिए। मरकाम ऐसा कर रहे हैं तो एक विधायक के स्तर पर यह एकदम जरूरी है। मगर सत्ताधारी दल के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनसे पूरे राज्य के संगठन को जो अपेक्षाएं हैं, उनकी पूर्ति कौन करेगा। वैसे अब मरकाम का कार्यकाल पूरा हो चुका है। अगले अध्यक्ष की नियुक्ति तक उन्हें सम्हालना है तो उन्हें तब तक पूरे राज्य में संगठन के आयोजनों का नेतृत्व करना चाहिए, क्या यह भावना कार्यकर्ताओं के मन में नहीं आयेगी? दूसरी बात यह कि आजादी के अमृत महोत्सव पर भाजपा जिस तरह तिरंगा यात्रा निकाल रही है तो उसके जवाब में निकाली जा रही कांग्रेस की गौरव यात्रा में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को क्या अपनी पार्टी की गौरवगाथा के साथ अपने शहीद नेताओं की याद नहीं दिलाना चाहिए? क्या मोहन मरकाम बस्तर के झीरम के शहीदों की शहादत को इस गौरव यात्रा में अहमियत नहीं दे सकते थे? वे तो सफाई अभियान में लग गए। स्वच्छ भारत का राजनीतिक ठेका तो भाजपा ने ले रखा है। मरकाम झाड़ू लगाते दिखेंगे तो क्या यह नहीं लग रहा कि जिस छत्तीसगढ़ को हर बार स्वच्छता का राष्ट्रीय एवॉर्ड मिल रहा है, वहां उन्हें करना कुछ चाहिए और वे कर कुछ रहे हैं।