मुख्यमंत्री की ‘बारी’ में अफसर – नेताओं ने कर डाली भ्रष्टाचार की खेती

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  • नरवा, घुरवा, गरवा, बारी योजना की आड़ में किए जमकर वारे न्यारे
  • परंपरागत खेती को बढ़ावा देने की भूपेश बघेल की मंशा को पलीता
  • हार्डवेयर, स्टेशनरी दुकान वालों से कराई फसलों के बीज की आपूर्ति

अर्जुन झा

बकावंड बस्तर संभाग के कुछ स्वार्थी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ‘बारी’ में भ्रष्टाचार की खेती कर डाली है। जो जनप्रतिनिधि मेडिकल स्टोर, हार्डवेयर, स्टेशनरी की दुकान चलाते हैं, उन्हें विभिन्न फसलों के बीज की आपूर्ति का काम दे दिया गया। मुख्यमंत्री श्री बघेल की दूरगामी सोच रही है कि परंपरागत खेती को बढ़ावा दिया जाए। मुख्यमंत्री की इस सोच और मंशा को भ्रष्ट अफसरों और जनता के तथाकथित नुमाइंदों ने रौँद कर रख दिया है। छत्तीसगढ़ में परंपरागत कृषि प्रणाली और खेती को पुनर्जिवित करने के नेक इरादे के साथ प्रदेश के किसान पुत्र मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नरवा, घुरवा, गरवा, बारी योजना का सूत्रपात किया है। जिन जिलों में इस योजना पर ईमानदारी से काम किया जा रहा है, वहां इसके उत्साहजनक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। वहीं बस्तर संभाग में तो भ्रष्ट तंत्र ने इस योजना को भी अपने लिए दुधारू गाय बना लिया है। यहां के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बारी ( बाड़ी ) में ही भ्रष्टाचार की खेती शुरू कर दी है। बस्तर संभाग में एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना जगदलपुर द्वारा नरवा, घुरवा, गरवा, बारी योजना की अवधारणा के तहत आदिवासी कृषि प्रणालियों के पुनरोद्धार, मिल्ट्स रिज्यूविनेशन प्रोजेक्ट और बाड़ी विकास कार्यक्रम सन 2019 से चलाया जा रहा है। इसके तहत अनुसूचित जनजाति के गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले किसानों को परंपरागत खेती के लिए प्रोत्साहित करने का प्रावधान है। ऐसे किसानों को मक्का, कोदो, कुटकी, कुलथी तथा स्थानीय सब्जियों के बीज के किट उपलब्ध कराए जाते हैं। ये बीज कृषि संबंधी खाद, बीज आदि विक्रय करने वाले व्यापारी उपलब्ध करा सकते हैं, मगर बस्तर संभाग में लोहे का सामान बेचने वाले हार्डवेयर दुकानदारों तथा स्टेशनरी बेचने वालों से अफसरों ने सांठगांठ कर बीज किटों की आपूर्ति करवा डाली है। बकावंड जनपद पंचायत में ऐसे व्यापारियों ने तथाकथित बीज किटों की आपूर्ति की है, जो मेडिकल स्टोर्स, हार्डवेयर शॉप, स्टेशनरी शॉप आदि के संचालक हैं। यही नहीं ये व्यापारी निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधि भी हैं। यह खेल सन 2019 से चल रहा है। इस अवधि में शासन से योजना के क्रियान्वयन के लिए करोड़ों रुपए एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना जगदलपुर को प्राप्त हुए। इस सरकारी रकम की जमकर हेराफेरी हुई है। गरीब आदिवासी किसानों को तो मुख्यमंत्री की अभिनव योजना का लाभ मिला नहीं, अपितु अधिकारी और जनप्रतिनिधि व्यापारी जरूर मालामाल हो गए हैं। अकेले बकावंड विकासखंड में इस तरह का गोलमाल हुआ है, ऐसी बात नहीं है। इस तरह का खेल समूचे बस्तर संभाग में हुआ है।

इन गांवों का हुआ था चयन

आदिवासियों की कृषि प्रणाली के पुनरोद्धार, मिल्ट्स रिज्यूविनेशन प्रोजेक्ट समेत बाड़ी विकास कार्यक्रम के लिए दो कलस्टर में बकावंड विकास खंड के डेढ़ दर्जन से भी अधिक गांवों के किसानों का चयन हुआ था। बकावंड – 1 के तहत ग्राम बजावंड, कोरटा, कोसमी, दाबगुड़ा, दशापाल, भेजरीपदर, तोंग कोंगेरा, कवड़ावंड, उड़ियापाल, पीठापुर व नलपावंड के आदिवासी किसान चयनित हुए थे। वहीं दूसरे कलस्टर में बकावंड – 2 के तहत बेड़ा उमरगांव, कचनार, मोंगरापाल, मीरलिंगा, नेगानार, पंडानार, सरगीपाल, छोटे देवड़ा, चोलनार, मोहलई व रामपाल गांवों के हितग्राही किसानों को योजना का लाभ देने का दावा किया गया है। जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है। इन दोनों कलस्टर के लिए कुल 23 लाख 10 हजार रु. स्वीकृत किए गए थे।

टूट गया परंपरागत खेती का सपना

परंपरागत कृषि को प्रोत्साहन देने का जो सपना मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने संजो रखा था, उसे भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों की जुगलबंदी ने बस्तर में तोड़कर रख दिया है। अनुसूचित जनजाति के किसानों को योजना का समुचित लाभ नहीं मिल पाया। फर्जी बीज सप्लायर बने जनप्रतिनिधि व्यापारियों ने निहायत ही घटिया और कम मात्रा के बीजों वाले किट्स की आपूर्ति की। जो व्यापारी दवाओं, कॉपी, पुस्तकों, बाल्टी, रस्सी, कील, व लोहे का सामान बेचते रहे हैं, उनसे बीजों की गुणवत्ता की उम्मीद करना भी बेमानी है। जिन्हें कृषि क्षेत्र का कोई विशेष अनुभव ही न हो, वे भला कैसे स्तरीय बीज उपलब्ध करा सकते हैं ?*रजिस्ट्रेशन नंबर वही पुराना*तथाकथित बीज सप्लायर जनप्रतिनिधियों ने बीज किट्स की आपूर्ति के लिए अपने फर्म के जो रजिस्ट्रेशन नंबर व जीएसटी नंबर जनपद पंचायत कार्यालय में पेश किए हैं, वे उनकी मूल दुकानों के हैं। ये रजिस्ट्रेशन व जीएसटी नंबर मेडिकल स्टोर, स्टेशनरी व हार्डवेयर शॉप के नाम पर हैं। इस तरह शासन की आंखों में धूल झोंककर बड़े पैमाने पर टैक्स की भी चोरी की गई है। व्यापारी बने जनप्रतिनिधियों ने शासन के साथ धोखाधड़ी की है, जो कि अपराध की श्रेणी में आता है।