30 प्रतिशत से भी कम रहा बस्तर यूनिवर्सिटी का परीक्षा परिणाम

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  • अभाविप के जिला संयोजक वरुण साहनी ने नतीजे पर जताई चिंता, शिक्षण व्यवस्था पर उठाए सवाल

जगदलपुर बस्तर विश्वविद्यालय के सत्र 2022- 23 का परीक्षा परिणाम लगभग सभी विषयों के घोषित हो चुके हैं। परीक्षा परिणाम का औसत 30 प्रतिशत से भी है। यह छात्रों के भविष्य के लिए चिंता का विषय है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बस्तर जिला संयोजक वरुण साहनी ने इस निराशाजनक परीक्षा परिणाम पर चिंता जताते हुए यूनिवर्सिटी कि शिक्षण व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। वरुण साहनी ने परीक्षा कहा कि विश्वविद्यालय का परीक्षा परिणाम 30 प्रतिशत से भी कम रहना विद्यार्थियों के भविष्य को देखते हुए बेहद ही निराशाजनक है। घोषित परीक्षा परिणाम को लेकर छात्र छात्राओं में व्यापक आक्रोश है। ऐसे स्तरहीन परीक्षा फल से उनका मनोबल भी प्रभावित हो रहा है। वरुण ने राज्य सरकार की लचर शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि बस्तर विश्वविद्यालय के अधीन महाविद्यालयों में नियमित प्रोफेसरों की कमी बनी हुई है। अधिकांश कॉलेजों में नियमित प्राचार्य भी नियुक्त नहीं हैं। सरकार आज नए शिक्षण संस्थान खोल रही है, किंतु उन संस्थानों के सुचारू रूप से संचालन के लिए पर्याप्त संसाधन की व्यवस्था करने में सरकार सक्षम साबित नहीं हो पा रही है। इसका खामियाजा छात्र छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है। वरुण साहनी ने बताया है कि यूनिवर्सिटी के ज्यादातर विद्यार्थी या तो फेल हो चुके हैं, या फिर पूरक के पात्र बन गए हैं। हजारों विद्यार्थियों का पूरा साल बर्बाद हो गया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार सीधे तौर पर विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। इसके चलते विद्यार्थियों में पढ़ाई को लेकर शंका एवं भय का माहौल निर्मित हो रहा है।

हिंदी माध्यम सम्हल नहीं रहा, ख्वाब अंग्रेजी का

अभाविप के जिला संयोजक वरुण साहनी ने कहा कि प्रदेश सरकार से हिंदी माध्यम वाले महाविद्यालय तो सम्हल नहीं पा रहे हैं और वह राज्य में अंग्रेजी माध्यम महाविद्यालय खोलने का ख्वाब दिखा रही है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार हिंदी माध्यम महाविद्यालयों में शैक्षणिक स्टॉफ और संसाधनों की व्यवस्था करने में पूरी तरह असफल रही है। यह विद्यार्थियों के प्रति सरकार की संवेदनहीनता का परिचायक है।सरकार विद्यार्थियों को सिर्फ लॉलीपॉप थमाने का काम कर रही है।विश्वविद्यालय की मूल्यांकन पद्धति पर सवाल उठाते हुए वरुण साहनी कहा है कि एक ही वर्ष में परिणाम का प्रभावित होना कहीं ना कहीं मूल्यांकन प्रक्रिया पर भी संदेह उत्पन्न करता है। छात्रहित को ध्यान में रखते हुए घोषित परिणामों और आने वाले परिणामों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।