विद्यार्थियों के खेवनहार खुद नैया खेते पहुंचते हैं स्कूल

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  •  इंद्रावती में नाव चलाकर स्कूल पहुंचते हैं दो शिक्षक
  • बच्चों का भविष्य संवारने 17 साल से दांव पर लगाते आ रहे हैं अपनी जिंदगी

अर्जुन झा

लोहंडीगुड़ा शिक्षक अनिल कुमार ग्वारे और उमेश कुमार मंडावी वास्तव में गुरु की महत्ता और सार्थकता को सिद्ध कर रहे हैं। उनके जैसा जज्बा हर शिक्षक में हो, तो फिर भला विद्यार्थी स्वामी विवेकानंद, अब्दुल कलाम, डॉ. बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर, कल्पना चावला, पीटी ऊषा जैसी शख्सियत कैसे नहीं बनेंगे ? इन दोनों शिक्षकों के जज्बे को दिल से सलाम है।

आएदिन समाचार माध्यमों से शिक्षकों के अपनी शाला से गायब रहने, समय पर शाला न पहुंचने और समय से पहले शाला बंदकर रफूचक्कर हो जाने, शराब पीकर स्कूल पहुंचने, छात्राओं से गंदी हरकत करने जैसी खबरें सामने आती हैं। ऐसी खबरें मन को उद्वेलित कर देती हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था की दुर्गति भी कोई नई बात नहीं है। बस्तर संभाग के दूरस्थ वनांचलों के स्कूलों के शैक्षणिक स्तर और शिक्षक शिक्षिकाओं की मनमानी एवं लापरवाही से जुड़ी शिकायतें हफ्ते पंद्रह दिन में आती ही रहती हैं। यहां की शालाओं की शिक्षण व्यवस्था पर भी सवाल उठते रहते हैं। ऐसे हालातों के बीच बस्तर जिले के लोहंडीगुड़ा विकासखंड से दिल को सुकून देने वाली बड़ी अच्छी खबर सामने आई है।लोहंडीगुड़ा जनपद पंचायत क्षेत्र में स्थित ग्राम कोरली की सरकारी शालाओं में दो ऐसे शिक्षक पदस्थ हैं, जो दूसरे शिक्षकों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं। ये दोनों शिक्षक बीते 17 सालों से स्वयं नाव चलाते हुए इंद्रावती नदी को पार करके अपने स्कूल पहुंच रहे हैं और पूरे मनोयोग से विद्यार्थियों को पढ़ाकर उनका भविष्य संवारने में लगे हुए हैं। दोनों शिक्षक इंद्रावती नदी के पुसपाल घाट से स्वयं नाव खेते हुए कोरली स्कूल पहुंचते हैं और शाला में अध्ययनरत 33 बच्चों को पढ़ाते हैं। पूरी तरह समर्पित भाव से शिक्षा दान में लगे इन शिक्षकों की कर्तव्यनिष्ठा को शासन ने कभी सम्मानित करने की जरूरत ही नहीं समझी। हालांकि इन शिक्षकों को ऐसे किसी सम्मान की लालसा नहीं है। वे कहते हैं – हमारे स्कूल के बच्चे पढ़ लिखकर योग्य बन जाएं, यही हमारी बड़ी उपलब्धि है। बस्तर

जिला मुख्यालय जगदलपुर से 80 किमी की दूरी पर बिनता घाटी की वादियों में स्थित गांव कोरली में पदस्थ शिक्षक अनिल कुमार ग्वारे और उमेश कुमार मंडावी की कहानी किसी अजूबे से कम नहीं है। कोरली गांव में सन 1977 में प्राथमिक शाला की स्थापना हुई। कुछ वर्षों बाद वहां पूर्व माध्यमिक शाला भी खोल दी गई। अब कोरली के बच्चे मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इन्हीं शालाओं शिक्षक अनिल कुमार ग्वारे और उमेश कुमार मंडावी पदस्थ हैं। शासकीय प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक शाला कोरली में वर्ष 2006 से बालोद निवासी शिक्षक अनिल कुमार ग्वारे तथा 2010 से फरसगांव निवासी शिक्षक उमेश कुमार मंडावी पदस्थ हैं। इन दोनों शालाओं में कुल 33 छात्र- छात्रा अध्ययनरत हैं। शिक्षक अनिल कुमार ग्वारे रोज लोहंडीगुड़ा से 20 किमी की दूरी तय कर तथा शिक्षक उमेश कुमार मंडावी तिरथा गांव से 10 किमी की दूरी तयकर पुसपाल घाट पहुंचते हैं और कोरली के ग्रामीणों द्वारा उपलब्ध कराई गई नाव को स्वयं खेते हुए लगभग डेढ़ किमी दूर कोरली घाट पहुंचते हैं। विद्यालयीन समय तक शिक्षण कर शाम को उसी नाव से पुसपाल घाट और फिर वहां से अपने -अपने लौटते हैं।

बारिश में शरणार्थी बन जाते हैं शिक्षक

शिक्षक उमेश कुमार मंडावी बताते हैं कि इंद्रावती जब उफान पर रहती है तब बड़ी परेशानी होती है। अभी करीब डेढ़ किमी नाव चलाकर रोज अपने स्कूल पहुंचते हैं और पूरे दिन बच्चों को लगन से अध्यापन सेवा देने के बाद तय समय पर घरों को लौट जाते हैं। घर लौटने के दौरान भी वही नैय्या और खुद ही खेवईय्या। नदी में बाढ़ आ जाने पर 45 किमी की दूरी तय कर लोहंडीगुड़ा से मारडूम, बदरेंगा बिनता होते हुए आना जाना पड़ता है। पहले तो भेजा से कोरली के बीच घाटी में सड़क भी नहीं थी। अब जाकर सड़क बन पाई है। शिक्षक अनिल कुमार ग्वारे बताते हैं कि बारिश के दिनों में जब हम लौट नहीं पाते तब गांव वाले हमें अपने घरों में शरण देते हैं। चूंकि कोरली में शिक्षक आवास नहीं है, इसलिए ग्रामीणों के घरों में रहकर और उन्हीं के साथ भोजन कर गुजारा करना पड़ता है। बारिश के दिनों में इंद्रावती नदी पूरी तरह उफान पर रहती है, बाढ़ जल्दी नहीं उतरती। ऐसी स्थिति में दोनों शिक्षकों को कई दिनों तक ग्रामीणों के घरों में शरणार्थी बनकर रहना पड़ता है।

हर गतिविधि कराते हैं बच्चों से

प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक शाला के कुल 33 विद्यार्थियों की पढ़ाई में ग्वारे और मंडावी अपनी ओर से कोई कमी नहीं करते। दोनों स्कूलों की आठ कक्षाओं में अध्यापन सेवा देना महज दो शिक्षकों के बूते की बात नहीं है, वह भी तब जबकि नाव चलाते दोनों की हड्डी पसली जवाब दे जाती है। अनिल ग्वारे और उमेश मंडावी सभी विद्यार्थियों को हर गतिविधि में पारंगत बनाने के लिए जी जान लगा देते हैं। बच्चों को वाद विवाद, संभाषण, पेंटिंग, व्यायाम, खेलकूद आदि विधाओं में दक्ष बनाने के लिए वे कोई कसर बाकी नहीं रखते। खेल खेल में पढ़ाई कराना उनकी विशेषता है। बच्चे भी मन लगाकर पढ़ाई करते हैं। जब कोई विद्यार्थी दो – तीन दिन तक शाला नहीं पहुंचता, तो शिक्षक उसके घर स्वयं पहुंच जाते हैं और अनुपस्थिति के कारण का पता लगाते हैं। दोनों शिक्षकों की कोशिश यही रहती है कि शालाओं में हमेशा शत प्रतिशत उपस्थिति बनी रहे।