प्रतिदिन की भांति संत राम बालक दास जी द्वारा उनके ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे किया गया जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कीये आज सत्संग परिचर्चा में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की व्यक्ति के जीवन में नामकरण संस्कार का क्या महत्व है, नाम किस प्रकार के होने चाहिये तथा नाम के अनुरूप गुण विकसित करने
कौन से प्रयत्न किये जाने चाहिये ? कृपया प्रकाश डालेंगे महाराज जी, मानव जीवन के इस विषय पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि हमारे जीवन में हिंदू धर्म के अनुसार 16 संस्कार बताए गए हैं जिसमें एक नामकरण संस्कार भी है जो कि बहुत महत्वपूर्ण है, हमारे जीवन में सबसे अधिक महत्व हमारे नाम का ही क्योंकि नाम ऐसा है जिसको हमारी मृत्यु के
बाद भी जाना व माना जाता है वह मृत्यु के पश्चात भी नहीं मिटता, वह हमारी अमिट पहचान है जो हमारे जन्म से लेकर हमारी मृत्यु के बाद भी हमारे साथ बनी रहती है इसीलिए जब भी नामकरण किया जाए तो सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए क्योंकि जीवन में एक ही बार नामकरण होता है विवाह भी दो या तीन बार किया जा सकता है मृत्यु को भी कभी-कभी कुछ लोग मात देकर वापस आ जाते हैं लेकिन एक बार नाम रख दिया जाए तो वह अंत तक चलता है |
नाम को किसी महापुरुष के सानिध्य में विचार करके शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में सही तरीके
और सही भाव के साथ राशि के अनुसार ही रखा जाना चाहिए राशि नाम का उपयोग की पूजा, उच्चारण में किया जाना चाहिए कई बार लड़कियों की शादी हो जाने पर गोत्र बदल जाने पर उनका नाम भी बदल दिया जाता है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए जो राशि नाम है उसी का उपयोग हर समय किया जाना चाहिए क्योंकि यह हमारे ग्रह नक्षत्रों को प्रभावित करता है और उनका प्रभाव हमारे जीवन के ऊपर पड़ता है इसीलिए राशि नाम का बहुत अधिक महत्व है,
शिशु के जन्म के पश्चात 6 दिन पर शिशु का नामकरण संस्कार के साथ किया जाना चाहिए कहा जाता है कि उस दिन ब्रह्मा जी उनके श्रवण द्वार को खोलते हैं इसके पश्चात पूर्वजों के द्वारा प्रचलित परंपराओं को क्रम अनुसार ही किया जाना चाहिए क्योंकि यह धार्मिक दृष्टि से ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी सही है
रामफ़ल जी के द्वारा सुंदरकांड की चौपाई ” जग महू सखा……… के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की, बाबा जी ने इन पंक्तियों के भाव को स्पष्ट करते हुए बताया कि, भगवान श्रीराम का जन्म केवल राक्षस रावण को मारने के लिए नहीं हुआ था उनका जन्म ऋषि-मुनियों के उद्धार के लिए, शबरी माता के उद्धार के लिए माता कौशल्या के मातृत्व के संतुष्टि के लिए, धर्म की स्थापना के लिए अपने भक्तों के उद्धार के लिए हुआ था, इसीलिए इन पंक्तियों का भाव यही है कि लक्ष्मण जो कि स्वयं शेषनाग के अवतार हैं उनका मात्र एक बान ही पूरे राक्षसों का नाश कर सकता था, भगवान राम का जन्म रावण की वध हेतु नहीं अपितु धर्म की स्थापना हेतु हुआ क्योंकि धर्म ही राम है और राम ही धर्म
दाताराम साहू जी ने कबीर दास जी की पंक्तियां
नाम रत्न धन मुझ में,खान खुली घट माहिं।सेंत मेंत ही देते हौं,ग्राहक कोई नाहिं।। पूज्य गुरुदेव जी इस पर प्रकाश डालने की कृपा करें, बाबा जी ने इन पंक्तियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संत गणों द्वारा मनुष्य को ईश्वर से मिलाने हेतु सेतु का निर्माण किया गया यह सेतु निर्माण उनके द्वारा रचित ग्रंथों महापुराण रामचरितमानस भगवत गीता उपनिषदों में उद्धृत है, परंतु मनुष्य अपने सांसारिक समुद्र में इस प्रकार फंसा हुआ है कि वह मोह माया लोभ प्रपंच झूठ छल कपट से उबर नहीं पा रहा है और ईश्वर मिलन सेतु मार्ग को ना देखते हुए संसार के मोह में फंसा हुआ है, इसी दुर्भाग्य को देखते हुए कबीर जी ने कहा है कि, वह राम नाम के रत्न की दुकान खोल कर बैठे हैं और इसको पाने का कोई मूल्य भी नहीं है परंतु यहां कोई भी ग्राहक नहीं आ रहा है अर्थात प्रपंची, जीव मोहमाया छल कपट जुआ शराब के लिए लाइन लगाकर खड़ा है जो दुख का हेतू है, लेकिन जो सुख व मुक्ति का हेतु है ऐसे पवित्र भगवान नाम और सत्संग के लिए लोगों की कमी हो रही है
इस प्रकार आज का आनंद दायक एवं ज्ञान पूर्ण रहा
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम