- रेत के काले खेल में दोनों दलों के नेता हैं शामिल
- अब पत्रकारों को मोहरा बनाकर मलाई खाने की कवायद में जुटे नेता
अर्जुन झा-
जगदलपुर एक कहावत है कि हम्माम में सभी नंगे रहते हैं, मगर सुकमा जिले के एक हम्माम में तो सबके सब नंगे हैं। पहले कांग्रेस नेता का तौलिया नीचे गिरा, अब भाजपा की लुंगी भी खिसक कर नीचे आ गई है। बात सुकमा जिले की शबरी नदी की रेत के अवैध कारोबार से जुड़ा हुआ है। पहले कांग्रेसी नेताओं ने रेत से जमकर मलाई निकाली, अब भाजपा के कुछ नेता यही मलाई छानने में लग गए हैं। हाथ से माल निकलता देख अब कांग्रेस के नेता पत्रकारों को मोहरा बनाकर रेत के गोरख धंधे में अपना वजूद बरकरार रखने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं।
सुकमा जिले के कोंटा विधानसभा क्षेत्र में बहने वाली शबरी नदी रेत के रूप में सोना उगलती है। इसी रेत रूपी सोने को हथियाने की जंग इन दिनों सुकमा क्षेत्र में चल रही है। सुकमा जिले की सीमाएं तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और ओड़िशा राज्यों से लगी हुई हैं। इन राज्यों तक रेत की तस्करी बड़ा ही आसान काम है। जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली कहावत भी सुकमा में चरितार्थ होती आई है। शबरी नदी से रोजाना सैकड़ों ट्रक रेत निकाल कर दूसरे राज्यों में भेजने का खेल न कल रुका था, न आज रुक पाया है। बस लाठी अब दूसरे हाथों में चली गई है। बरसात का मौसम शुरू होने से पहले हजारों ट्रक रेत का भंडारण कोंटा इलाके में किया गया था। क्योंकि नदी के बाढ़ग्रस्त रहने पर वहां से रेत खनन मुमकिन नहीं होता है। पूरे बरसात के मौसम में भंडारित रेत की तस्करी पड़ोसी राज्यों में बेधड़क चलती रही। तबकी लाठी वाले नेताजी का खौफ ऐसा कि अधिकारी मुंह तक खोलने से कांपते नजर आते थे। ऐसे में रेत तस्करी पर कार्रवाई की उम्मीद करना भी बेमानी ही थी। सत्ता परिवर्तन के कई माह बाद तक लाठी उसी पुराने नेताजी के हाथ में रही और भैंस भी उन्हीं की मिल्कीयत बनी रही। बाद में जब मौजूदा सत्ताधारी दल के नेताओं को रेत की मलाई की अहमियत समझ में आई, तो उन्होंने कांग्रेसी नेताजी के हाथों से भैंस छीन ली। अब रेत की यह मलाई भाजपा के कुछ स्थानीय नेता छानने लगे हैं। यह बात कांग्रेसी नेताजी भला कैसे सह पाते, सो उन्होंने पत्रकारों के कंधों पर बंदूक रखकर चलना शुरू कर दिया। भूरे रंग की रेत का खेल खेलने वाले राजनीतिक दलों के लोग पत्रकारों को किस तरह मोहरा बनाकर अपना राजनीतिक और आर्थिक रसूख चमकाने का प्रयास करते हैं, उसका नमूना सुकमा जिले के कोंटा विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिल रहा है। अपनी पार्टी की सरकार के दौरान शबरी नदी का सीना छलनी कर रेत का व्यापार कांग्रेस के नेता करते रहे, तो आज बीजेपी के कुछ नेताओं ने यह धंधा सम्हाल लिया है। रोज सैकड़ों ट्रक रेत को दूसरे राज्य पार करने में इन्हीं नेताओं के साथ मिलकर प्रशासन ने किया है। सरकार बदलते ही धंधे के नेतृत्वकर्ता बदल गए। अब अपना वर्चस्व बनाए रखने में जुटे पुराने धंधेबाजों ने पत्रकारों के माध्यम से पुनः इस धंधे में अपनी हुकूमत कायम करना चाहते हैं। प्रशासन की मदद से सरकार के करीबी ने इस मामले को राजनीति से नहीं सुलझा कर दवाब से सुलझाना चाहा जिसका परिणाम सामने है अब प्रशासन और सरकार के करीबी खामोशी की चादर ओढ़ कर रणनीतिक पैतरेबाजी को देख रहे हैं।वहीं पुराने धंधेबाज अब इस काम को हथियाने तो नहीं बल्कि इस मामले में अच्छे समझौते की राह खोज रहे हैं, ताकि रेत से निकलने वाली मलाई का कुछ हिस्सा उन्हें भी मिल जाए। कल सुकमा में हुए पत्रकारों के आंदोलन के दौरान मंच पर राजनीति के पुराने खिलाड़ी की उपस्थिति से अन्य जिले से आए पत्रकारों को सब समझ में आ गया कि पूरे प्रकरण में धंधा ही प्रमुख उद्देश्य है। पत्रकारों को महज उपयोग ही किया जा रहा है। वे पूछ रहे हैं कि जब फैसला इनसे ही हो जाता तो नाहक ही पत्रकार एकता के नाम पर प्रशासन पर दवाब बनाने का प्रयास आखिर क्यों किया जा रहा है?