(अर्जुन झा) – जगदलपुर – लगातार दुर्दशा का शिकार हो रही सरकारी विमानन कम्पनी एयर इंडिया टाटा के हाथ में जाने के संदर्भ में सारे देश में यह उम्मीद जागी है कि अब इसका संचालन बेहतर तरीके से होगा और यात्री सुविधाओं में भी इजाफा होगा। आज जिन क्षेत्रों में अच्छी विमान सेवाएं उपलब्ध हैं, वहां तेजी से विकास के रास्ते खुल रहे हैं। इसी भावना से बस्तर के मुख्यालय में विमान सेवा का दायरा बढ़ा है तो इसी सिलसिले में बस्तर में यह चर्चा भी छिड़ गई है कि बस्तर के नगरनार में स्थापित एनएमडीसी के स्टील प्लांट को निजी हाथों में सौंपने के लिए केंद्र सरकार उतावली है तो क्यों न इस प्लांट का संचालन अपने हाथ में लेने एयर इंडिया की तर्ज पर टाटा समूह पहल करे। टाटा ने बस्तर में औद्योगिक विस्तार के लिए जमीन अधिग्रहण किया था। टाटा ने बस्तर में औद्योगिक विकास के लिए रुचि दिखाई थी। काफी कुछ खर्च किया गया लेकिन टाटा का उद्योग स्थापित नहीं हो सका और आखिरकार समयावधि बीत जाने के बाद वह जमीन आदिवासियों को वापस हो गई। अगर टाटा का उद्योग बस्तर में स्थापित हो गया होता तो यहां के आदिवासियों को रोजगार के अवसर मिलते। अन्य बस्तरियों का भी भला होता तो बस्तर विकास की संभावनाएं भी तेजी से बढ़तीं। उम्मीद की जा रही थी कि टाटा का उद्योग स्थापित होने पर बस्तर का विकास टाटानगर की तर्ज पर संभव होगा। लेकिन किन्हीं कारणों से यह उम्मीद टूट गई।
अब टाटा ने एयर इंडिया के उद्धार की पहल की है तो बस्तर में इन संभावनाओं की दस्तक का इंतजार शुरू हो गया है कि टाटा बस्तर के नगरनार स्टील प्लांट के लिए क्या वैसी ही पहल करेगा, जैसी एयर इंडिया के लिए की गई है? वैसे भी टाटा स्टील उद्योग क्षेत्र की विश्वसनीय संस्था है। टाटा समूह देश के लोगों के बीच औद्योगिक विकास के साथ साथ सामाजिक सरोकार का एक प्रतीक माना जाता है। इधर नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण के मद्देनजर भारी विरोध हो रहा था। छत्तीसगढ़ विधानसभा में संकल्प पारित हो चुका है कि यह प्लांट राज्य को दिया जाय। राज्य इसका संचालन करेगा। बस्तर सांसद दीपक बैज लोकसभा में भी यह मामला उठा चुके हैं लेकिन अब तक केंद्र की ओर ले ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि नगरनार स्टील प्लांट छत्तीसगढ़ सरकार को मिल सकता है। यदि यह राज्य को मिलता है तो सरकार खुद संचालित करे, यह बस्तर के लोग चाहते हैं किंतु तब की स्थिति में अगर राज्य ने किसी औद्योगिक संस्थान को इसके संचालन से जोड़ा तो बात वहीं की वहीं रह जायेगी। अब ऐसी स्थिति में कि जब नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण न होने की कोई गारंटी नहीं है तो स्टील क्षेत्र के अनुभवी उद्योग समूह टाटा द्वारा इस दिशा में पहल की जाय तो बस्तर के विकास की राह आसान हो सकती है। यहां के आदिवासियों ने पूर्व में टाटा को अपनी जमीन आखिर विकास की उम्मीद में ही तो दी थी। अब भी यही भावना है कि बस्तर क्षेत्र के विकास और बस्तरियों के रोजगार की संभावना लेकर टाटा की बस्तर वापसी होती है तो यह भी एक आशावादी कदम होगा। हम यहां इस मामले में राजनीतिक दृष्टिकोण से परे यह देखें कि यदि निजीकरण से बस्तर का कल्याण होने की उम्मीद निकल सकती है तो इसमें राजनीतिक अड़ंगेबाजी फिजूल है। बस्तर तो सिर्फ यही चाहेगा कि नगरनार स्टील प्लांट का संचालन ऐसा हो कि बस्तर का विकास हो और यहां के लोगों को रोजगार मिले।