न रहेगा बांस, न बजेगी बंसी के फेर में बजा कांग्रेस का बैंड

0
392
  •  सीएम की रेस से हटाने के लिए साजिश के तहत हरवाए गए बैज और सिंहदेव
  • आदिवासी मुख्यमंत्री का भाजपाई दांव कांग्रेस को पड़ जाएगा बहुत भारी

अर्जुन झा

जगदलपुर राजनीति से जुड़े लोग किसी के सगे नहीं होते। ये कब दगाबाजी कर दें और अपनी औकात दिखा दें, कहा नहीं जा सकता। कुछ ऐसा ही इस बार के चुनाव में कांग्रेस की राजनीति में हुआ है। मुख्यमंत्री की रेस से हटाने के लिए दिग्गज नेता टीएस सिंहदेव और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज की राजनीतिक हत्या करा दी गई। न रहेगा बांस, न बजेगी बंसी के चक्कर में कांग्रेस का ही बैंड बजवा दिया गया। टीएस सिंहदेव पहले से ही मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे हैं। वहीं आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठने की स्थिति में दीपक बैज सबसे बड़ा चेहरा थे। ये दोनों नेता चुनाव जीतने न पाएं, इसके लिए पूरी ताकत कांग्रेस की ही एक लॉबी ने लगा दी थी।

कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इस पार्टी के नेता दिनरात एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। वे कतई नहीं चाहते कि उनके सिवा कोई दूसरा नेता राजनीति में आगे बढ़ पाए। इसके लिए कांग्रेस के कुछ नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं। भितरघात की जब भी बात आती है, तो हर किसी की जहन में कांग्रेस शब्द गूंज उठता है। भितरघात से भाजपा भी अछूती नहीं है, मगर उसके नेता पार्टी को पहले प्राथमिकता देते हैं। कांग्रेस में तो व्यक्ति की पूजा होती है। 2018 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर घमासान शुरू हो गया था। तब टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। सिंहदेव ने काफी जोर लगाया, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बना दिया। उस समय टीएस सिंहदेव को यह कहकर शांत बिठा दिया गया था कि भूपेश बघेल ढाई साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी सम्हालेंगे और बाकी के ढाई साल आप। मगर जब साढ़े तीन साल गुजर जाने के बाद भी सिंहदेव को मुख्यमंत्री पद नहीं मिला, तो उन्होंने कोहराम मचाना शुरु कर दिया। टीएस सिंहदेव बाबा के तेवर ने कांग्रेस के दिल्ली दरबार को भी हिला डाला था। फिर चला चली की बेला में बाबा को उप मुख्यमंत्री बनाकर लॉलीपॉप थमा दिया गया। बाबा ढंग से सत्ता सुख भोग भी नहीं पाए थे कि चुनाव की बेला आ गई। जाहिर सी बात है कि इस विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस की सरकार बनती, तो टीएस बाबा मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार होते। वहीं जब आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठती तो दीपक बैज ही सबसे बड़े विकल्प होते। मुख्यमंत्री पद के लिए संभावित ये चेहरे राज्य के कुछ बड़े नेताओं को खटकने लगे थे। बाबा और बैज को उक्त नेता अपनी राह का कांटा मानने लगे थे। राह के कांटों को हटाने के लिए उक्त नेताओं ने चुनाव के दौरान ऐसी चाल चली और खेल किया कि टीएस सिंहदेव बाबा एवं दीपक बैज को पराजय का सामना करना पड़ा। इस तरह न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी के चक्कर में पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का ही बैंड बज गया। पिछले चुनाव के मुकाबले कांग्रेस को आधी ही सीटें मिल पाई

कांग्रेस का ये है आदिवासी प्रेम !

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज आदिवासी समुदाय से आते हैं। वे अभा कांग्रेस कमेटी के आदिवासी विभाग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। वे बस्तर जिले के चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक चुने गए थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें बस्तर सीट से उतार दिया। दीपक बैज यह चुनाव भी प्रचंड मतों के साथ जीत गए। दीपक बैज संसद में सर्वाधिक मुखर होकर आवाज उठाने वाले छत्तीसगढ़ के इकलौते सांसद हैं। इसके अलावा उन्होंने आदिवासी समुदाय तथा बस्तर के विकास के लिए कड़ी मेहनत भी की है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय का मुख्य चेहरा बनकर उभरे हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में दीपक बैज को कांग्रेस ने पुनः चित्रकोट सीट से उतारा था। चित्रकोट में उनके पक्ष में जबरदस्त लहर भी देखी जा रही थी, लेकिन कांग्रेस के ही प्रतिद्वंदी खेमे के नेताओं ने श्री बैज को सीएम की रेस से हटाने के लिए उन्हें हराने का षड्यंत्र रच डाला। इस साजिश की परतें अब खुलने लगी हैं। बैज को हराने की सुपारी एक मंत्री को दी गई थी। मंत्री ने अपने नजदीकी लोगों माध्यम से ऐसा खेल खेला कि श्री बैज को हार का सामना करना पड़ा। एक आदिवासी नेता को निपटाने के लिए राज्य के ही कुछ बड़े कांग्रेस नेताओं ने जो साजिश रची, उसने कांग्रेस के तथाकथित आदिवासी प्रेम की असलियत सामने ला दी है।

भाजपा ने चला आदिवासी दांव तो..?

छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने जा रही है। अगर भारतीय जनता पार्टी अपने किसी आदिवासी विधायक को इस आदिवासी बहुल राज्य को मुख्यमंत्री बना देती है, तो फिर छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय के लोग कांग्रेस से पूरी तरह छिटक जाएंगे। तब हालात कांग्रेस के खिलाफ बनते चले जाएंगे और 2024 के लोकसभा चुनाव और 2028 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जो दुर्गति होगी, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। आदिवासी, दलित, ओबीसी, अनुसूचित जाति व अल्पसंख्यक कार्ड खेलती आ रही कांग्रेस को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। वहीं भाजपा छत्तीसगढ़ में इस कदर मजबूत हो जाएगी कि उसे चुनौती दे पाना भी कांग्रेस के लिए मुश्किल हो जाएगा।